Tuesday 15 November 2016

न्यायाधीशों की आधिकारिक भाषा नहीं बनेगी हिंदी

केंद्र सरकार ने हिंदी को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कामकाज की आधिकारिक भाषा बनाए जाने से इनकार किया है। सरकार ने कल शीर्ष अदालत के समक्ष दायर अपने हलफनामे में कहा है कि किसी भी भाषा को न्यायाधीशों पर थोपा नहीं जा सकता। हिंदी को इन न्यायालयों में कामकाज की आधिकारिक भाषा बनाने में केंद्र सरकार को सख्त विरोध का सामना करना पड़ा है। सरकार ने 18वें विधि आयोग की सिफारिशें मान ली हैं, जिसमें कहा गया है कि हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाना सार्थक नहीं है। जजों को अपना निर्णय अपनी पसंद की भाषा में सुनाने का अधिकार होना चाहिए। हर एक नागरिक और हर एक अदालत को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय जानने-समझने का अधिकार है और यह स्वीकार करना होगा कि अंग्रेजी ही अभी फिलहाल ऐसी भाषा है, जिससे यह काम हो सकता है। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि यदि हिंदी को जबरन थोपा गया तो न्यायिक प्रशासन के साथ-साथ न्यायाधीशों की क्वालिटी और उनके निर्णयों पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा। दोनों पक्षों के वाद-विवाद, कानून की किताबें और केस स्टडी लगभग सभी अंग्रेजी में होते हैं। ऐसे में जजों के लिए अंग्रेजी बस संप्रेषण का काम नहीं कर रही होती, बल्कि यह उनके निर्णय का एक हिस्सा होती है।


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